कारोबार की दुनिया में परिवार की विरासत को बढ़ा रही महिलाएं और दे रहीं हजारों गरीब वर्ग को रोजगार

परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने का काम लड़कियां बखूबी कर रही हैं। हुनर को सीख कर उसे सहेजना और उसमें अपनी प्रतिभा को जोड़कर कुछ अलग करना ही इन महिलाओं का उद्देश्य है। तभी तो कारोबार की दुनिया में अपना मुकाम हासिल करने का सपना पूरा किया बल्कि युवा पीढ़ी की मार्गदर्शक  भी  बन गईं। चलिए जानें ऐसी ही कुछ युवा उद्यमी महिलाओं को जिन्होंने कठिनाइयों के रास्ते को पूरा कर अपना लक्ष्य हासिल किया और कमजोर वर्ग की हजारों महिलाओं का भी भविष्य बनाने का काम किया।


मां बन गई बिजनेस वीमेन
सोनू एक ऐसा स्कूल चाहती थीं, जहां पढ़ने वाले अपने बच्चे पर हर माता-पिता नजर रख सकें। बच्चों के लिए सुरक्षित माहौल व माता-पिता की उनको लेकर चिंता को मिटाने के लिए ही वे लखनऊ में फुटप्रिंट स्कूल का कॉन्सेप्ट लेकर आईं। इस स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ प्राथमिकता ‘लाइव स्ट्रीमिंग’ को दी गई। बिजनेस वुमेन सोनू अग्रवाल का प्रयोग सफल रहा। महज तीन साल में इंदिरानगर के बाद गोमती नगर में एक और स्कूल खुल चुका है।
बिजनेस मॉड्यूल में पीढ़ियों का ख्याल


सोनू कहती हैं कि सिर्फ बच्चों की चिंता ही नहीं, स्कूल खोलने के पीछे मकसद एकल परिवार के एकाकीपन के दर्द से बच्चों और खासकर दादा-दादी को दूर रखना है। इसके लिए एक तरीका तो ‘लाइव स्ट्रीमिंग’ है, जिसमें एक एप के जरिए हर माता-पिता बच्चों की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं। दादा-दादी अब पोते-पोतियों के बचपन से दूर हो रहे हैं। हमारा एप उनकी इस कमी को पूरा करता है, क्योंकि वह अपने पोते-पोतियों की गतिविधियों का घर बैठे हिस्सा बन पाते हैं। वहीं हम अपने आयोजनों में ग्रैंड पेरेंट्स को इनवाइट करना नहीं भूलते, बल्कि यूं कहिए कि हमारे चीफगेस्ट भी वहीं होते हैं। सोनू के मुताबिक, हम परिवार के महत्व को समझते हैं और बच्चों को उसकी अहमियत समझाना चाहते हैं।

परिवार की पहली महिला उद्यमी
अंजलि सिंह के परिवार में सभी नौकरीपेशा हैं। वह घर की पहली सदस्य हैं, जिन्होंने उद्यमी बनने का फैसला किया। भोपाल में पैदाइश, लेकिन पढ़ाई-लिखाई लखनऊ में हुई। दस साल तक खुद मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की। 2009 में इनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया और इन्होंने उस बदलाव को गले से लगा लिया। नौकरी छोड़ी और नींव पड़ी जूट फाॅर लाइफ की। इससे पर्यावरण को तो फायदा हुआ ही, कई परिवारों को काम भी मिला।
गांव की गलियों से विदेश तक
अंजलि बताती हैं कि एक चाइनीज मुहावरा है, ‘किसी को रोटी मत दो, उसमें रोटी कमाने का हुनर पैदा करो।’ इसी सोच ने मुझे ताकत दी। 400 परिवारों को जूट फाॅर लाइफ सक्षम बना चुका है। अंजलि बताती हैं कि वीमेन आॅन विंग्स, नीदरलैंड की संस्था है। नौ साल की लंबी कोशिशों का नतीजा है कि नीदरलैंड की कंसल्टेंसी कंपनी ने हमसे संपर्क किया और वह हमें निशुल्क ट्रेनिंग दे रही है। अंजलि बताती हैं कि हम कोलकाता से जूट मंगाते हैं। हम मार्केट में नहीं बल्कि सेमिनार, कॉन्फ्रेंस व अन्य बड़े आयोजनों के लिए जूट बैग बनाकर सप्लाई कर रहे हैं। कठिनाई नहीं आई, क्योंकि हमें प्रशिक्षित कारीगर आसानी से मिल गए। हम खुद उन तक काम पहुंचाते हैं, उनसे कलेक्ट करते हैं और बेचते हैं।

पिता और अपने सपने को साथ-साथ पूरा कर रहीं
बचपन में बनाए स्केच कब अंकिता का पैशन बन गए, उन्हें इसका पता ही नहीं चला। पढ़ाई के साथ-साथ उनकी कला भी निखरती गई। कुछ समय के लिए मूर्तिकला की बारीकियां सीखने को कोर्स भी किया। इस बीच पिता ने बेटे-बेटी के बीच जिम्मेदारियां बांट दीं। होटल रमाडा की डायरेक्टर के रूप में जुट गईं पिता का सपना पूरा करने में, पर बने-बनाए रास्तों पर चलना उन्हें रास नहीं आया और अस्तित्व में आया ब्रिओ आर्ट हाउस एंड कैफे।
पर्यावरण व विरासत सहेजने पर फोकस  
अंकिता बताती हैं कि ब्रिओ आर्ट एंड क्राफ्ट कैफे महज बैठकर चाय-पानी, कुछ खाने-पीने की जगह नहीं। यह थ्री इन वन प्लेस के कॉन्सेप्ट पर तैयार किया गया है। पहला, ये आर्ट गैलरी है, जहां हम लोगों को अपनी संस्कृति, कला के बारे में विभिन्न माध्यमों से बताते हैं। दूसरा, यह आर्ट हाउस शॉप भी है, जहां सिर्फ ईकोफ्रेंडली उत्पाद ही बेचने के लिए उपलब्ध हैं। फिर आती है बारी एक ऐसे कैफे की जहां प्राकृतिक वातावरण में आपका स्वागत होता है। यहां प्लास्टिक का इस्तेमाल न के बराबर होता है। मिट्टी के बर्तनों को कुछ स्टाइलिश लुक देकर इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां का हर स्टाफ खादी के कपड़ों में नजर आता है। अंकिता कहती हैं कि पहले ईकोफ्रेंडली जैसी चीजें नहीं थीं। अब इन्हें एक दायरे में बांधना जरूरी है, क्योंकि सस्ती और प्लास्टिक की चीजों ने हमारा पर्यावरण तबाह कर दिया है। ईकोफ्रेंडली चीजें सबका हक हैं, इन्हें आम आदमी की पहुंच में लाने के लिए इनके ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पर जोर देना होगा।